अब रतलाम में एक भी अवैध होर्डिंग नहीं दिखेगा?
डी.पी. ज्वेलर्स को नगर निगम का नोटिस बना जन चर्चा का विषय !
रतलाम। नगर निगम द्वारा डी.पी. ज्वेलर्स को बिना अनुमति होर्डिंग और स्वागत द्वारा लगाने के लिए 1 लाख 80 हजार का नोटिस दिया गया है जो जन चर्चा का विषय बन गया है।

इस नोटिस को लेकर आम और खास में चर्चा है कि अब शहर में कोई भी अवैध होर्डिंग नहीं लगने दिया जाएगा क्या ?
अब नेता, भैय्या, दादा-पहलवान भी शहर में अपने चौखटे टांगने के लिए नगर निगम से अनुमति लेते हुए नजर आएंगे?
अब शहर अवैध होर्डिंग्स से मुक्त नजर आएगा?
क्या रतलाम के जांबाज महापौर प्रहलाद पटेल शहर को अवैध होर्डिंग बैनर मुक्त बना देंगे? अब राहगीरों का ध्यान खींचने वाले यातायात व्यवस्था में बाधक होर्डिंग्स और बैनर से रतलामियों को मुक्ति मिल जाएगी? और भी बाते जनचर्चा का विषय बनी हुई है या सिर्फ यह नोटिस डी.पी. ज्वेलर्स वालों पर दबाव बनाने के लिए दिया गया है ? उल्लेखनीय है कि यह होर्डिंग्स और प्रवेश द्वार बैनर प्रवेश द्वारा सनातन धर्म प्रचारक बागेश्वर धाम प्रमुख धीरेन्द्र शास्त्री के आगमन पर लगाये गये थे। ज्ञात रहे कि धीरेन्द्र शास्त्री को भारत सरकार द्वारा वाय कैटेगरी की सुरक्षा प्रदान की गई है।
क्या शहर में पहली बार होर्डिंग लगें। तो कितने राजनेताओं के रतलाम आने पर शहर को सजाया संवारा जाता हैं और किसी भी आयोजन में किसी पर भी जुर्माना लगाया जाने की बात क्यों नहीं उछली और इस धार्मिक आयोजन को आखिरकार क्यों निशाना बनाया जा रहा हैं यदि कोई नियम-कानून का उल्लंघन हुआ हैं तो निगम द्वारा नोटिस देना उचित हैं परंतु क्या यही सख्ती नगर निगम उन राजनीतिक दलों, नेताओं, पहलवानों और अन्य संस्थाओं पर भी दिखाता है जो आए दिन बिजली के खंभों, सार्वजनिक दीवारों और अन्य नगर निगम की संपत्तियों पर बिना अनुमति बैनर, पोस्टर और होर्डिंग्स लगा देते हैं?

क्या निगम ने कभी किसी राजनीतिक दल या नेता या पहलवान या किसी धार्मिक संस्था को आज तक नोटिस जारी किया गया? क्या नगर निगम ने समय-समय पर कभी यह पड़ताल कि, हैं की ऐसे पोस्टर और बैनर लगाने के लिए अनुमति ली गई थी या नहीं? यदि नहीं तो फिर यह स्पष्ट रूप से दर्शाता हैं कि नगर निगम की कार्यवाहीं चुनिंदा लोगों और संस्थाओं तक ही सीमित हैं।
शहर को सैकड़ों की संख्या में रोजगार देने वाले और सरकार को करोड़ों का राजस्व देने वाले किसी प्रतिष्ठान संस्थान की इमेज से खिलवाड़ तो नहीं हो रहा। इसके अतिरिक्त एक और चिंताजनक बात यह है कि ज्वेलर्स को नोटिस देना तो एक प्रशासनिक प्रक्रिया हो सकती है, इससे उस संस्था की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता हैं जो पहले से ही नगर निगम को राजस्व प्रदान कर रही हैं।
तो क्या यह समझा जाए कि नगर निगम सिर्फ उन्हीं पर कार्यवाहीं करता हैं जो कानून का पालन करते हुए किराया अदा करते हैं और समूची प्रशासनिक शर्तों को पूरा करते हैं जबकि राजनीतिक और प्रभावशाली संस्थाओं को खुली छूट दे रखी हैं? निगम प्रशासन का कानून सबके लिए बराबर है तो कार्यवाहीं भी सब पर समान रूप से होना चाहिए वह भी बिना किसी भेदभाव के।
इस मामले में डी.पी. ज्वेलर्स के डायरेक्टर अनिल कटारिया बताते हैं कि हमने इंदौर की एडवरटाइजिंग एजेंसी को पूरा कॉन्ट्रैक्ट दिया है सारी जवाबदारी उनकी है हमारा कोई रोल नहीं है।