महर्षि दयानंद वैदिक विद्यालय में उपनिषद कथा का शुभारंभ
रतलाम।आर्य समाज रतलाम के तत्वाधान में उपनिषद कथा का आयोजन हो रहा है। कथा के वक्ता दर्शन योग धाम गांधीनगर, गुजरात के आचार्य योगेश जी वैदिक हैं।स्वागत आर्य समाज के पदाधिकारी श्री रामकुमार यादव, राजेंद्र बाबू गुप्ता, सुभाष सोनी, वेद प्रकाश आर्य, लल्लन सिंह ठाकुर एवं प्रकाश अग्रवाल ने किया। भजन की सुन्दर प्रस्तुति श्री रामबहादुर शास्त्री ने दी तदुपरांत उपस्थित उपनिषद जिज्ञासुओं को कथा श्रवण कराते हुए आचार्य श्री ने कहा कि मुक्ति प्राप्त करने के लिए संसार में तीन सत्ताएं हैं एक ईश्वर की दूसरी आत्मा की और तीसरी प्रकृति की।
इन तीनों सत्ताओं के संबंध में तत्व ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य है क्योंकि इससे ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। कथा के अन्तर्गत पूज्य आचार्य जी ने उन अनसुलझे और भ्रम में डालने वाले प्रश्नों के भी उत्तर दिए जो प्राय: सनातनियों को उलझा देते हैं। सबसे बड़ा प्रश्न सनातन धर्मियों से किया जाता है कि आप ईश्वर को मानते हो तो दिखता क्यों नहीं?
आचार्य श्री ने कहा कि यदि कोई वस्तु आंख से न दिखाई दे तो क्या उसकी सत्ता को अस्वीकार कर दिया जाएगा?
काल की दूरी के कारण (पूर्वज), स्थान की दूरी के कारण (नगर भवन स्मारक), अत्यधिक निकटता के कारण (आंख का काजल माथे की बिंदी), ओट आवरण के कारण (पड़ोस के घर दुकान मकान), रेडियेशन, गुरुत्वाकर्षण बल आदि यह सब दिखाई नहीं देते; तो क्या इनका अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया जाएगा? नहीं।
ईश्वर इस संसार का स्वामी है जीवात्मा को यह संसार त्याग पूर्वक भोग करने हेतु प्राप्त है। मनुष्य को उपभोगी जीवन नहीं अपितु उपयोगी जीवन व्यतीत करना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा कि उपदेश मौन रहकर भी दिया जा सकता और एक अक्षर में भी दिया जा सकता है, इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्यों की तीन श्रेणी हैं दानव, मानव और देव। उपनिषद कथा के अंतर्गत प्रजापति के द्वारा “द” शब्द का उपदेश किया गया। देवों को “द” का उपदेश अर्थात दमन इंद्रिय निग्रह_मन का दमन की शिक्षा है क्योंकि उच्च पद प्रतिष्ठा पाकर यदि इंद्रिय संयम नहीं किया तो देव को दानव बनते देर नहीं लगती।
इसी प्रकार मनुष्य को “द” से दान की शिक्षा दी। मनुष्य प्राप्त ज्ञान बल कला कौशल साधन को दूसरों के उपकारार्थ दान अवश्य करे इसी से मानव सभ्यता का विकास होता है। और तीसरा उपदेश दानव के लिए “द” अर्थात दया का दिया। क्योंकि मनुष्य यदि हिंसक पिशाच राक्षस प्रकृति से बचना चाहता है तो वह सब प्राणियों के प्रति दया भाव रखे। दया करुणा का भाव दानव को मानव बना देता है। ऐसे ही बहुत से रोचक भ्रम निवारक ज्ञानवर्धक प्रसंगों का श्रवण उपनिषद कथा में कराया गया। श्रवण उपनिषद कथा में क्षेत्र के गणमान्य नागरिक महिलाएं एवं पुरुष बड़ी संख्या में उपस्थित थे।यह जानकारी श्री प्रकाश जी अग्रवाल ने दी।

