आत्मा के सौंदर्य को कभी बुढापा नहीं आता -आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा
रतलाम। रूप चौदस के पर्व पर परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कहा कि सौंदर्य के दो प्रकार है-एक विनाशी सौंदर्य और दूसरा अविनाशी सौंदर्य। मनुष्य जब तक अविनाशी सौंदर्य को नहीं देखता, तब तक विनाशी सौंदर्य के प्रति आकर्षण बना रहता है।
छोटू भाई की बगीची में आयोजित प्रवचन में आचार्यश्री ने रूप चौदस पर यदि अविनाशी सौंदर्य का बोध और उसका आकर्षण हो जाए, तो मानव भव सफल हो जाएगा। विनाशी सौंदर्य तो तभी तक अच्छा लगता है, जब तक शरीर में यौवन रहता है। यौवन के दिन भी चार होते है। किसी के जीवन मे यौवन सदा बना नहीं रहता और चार दिनों बाद बुढापे में ढल जाता है। विनाशी सौंदर्य बुढापे में कुरूप लगने लग जाता है। जबकि आत्मा के सौंदर्य को कभी बुढापा नहीं आता है।
आचार्यश्री ने कहा कि आत्मा का सौंदर्य सदैव एक जैसा रहता है। इसके दृष्टा बनने वाले कभी निराश नहीं होते। वे हमेशा प्रसन्न रहते है और उनके लिए हर दिन रूप चौदस होता है। सांसारियों के लिए रूप चौदस साल में एक बार आती है, साधकों की तो प्रतिदिन रूप चौदस रहती है। वे आत्म दृष्टा बनकर अविनाशी सौंदय के प्रति आकर्षण रखते है और उसे ही बढाने में लगे रहते है। यदि हमारे अंदर भी ऐसे भाव बनेंगे, तो जीवन रूपवान और आनंददायी हो जाएगा।
उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने इस मौके पर कर्म के प्रकारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कर्म बंध पांच प्रकार के होते है। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग इन प्रकारों से कर्म बंध होने से बचना चाहिए। तरूण तपस्वी श्री युगप्रभ मुनिजी मसा ने रूप चौदस के गौरव पर प्रकाश डाला। इस दौरान बच्चों ने पटाखे नहीं जलाने का संकल्प लिया। प्रवचन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।