नरेन्द्र मोदी ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा बदल दी

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय राजनीति की विवेचना और समीक्षा करना उचित और आवश्यक हो गया है। राजनीति के पंडित और विद्यार्थी दोनों के लिए यह विषय रूचिकर होगा, ऐसी अपेक्षा है। प्रत्येक देश में समय-काल के अनुसार ऐसे व्यक्ति अवतरित होते हैं जो अपने व्यक्तित्व का प्रभाव हमेशा के लिए छोड़ जाते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ व्यक्तित्व ऐसे हुए हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति को बहुत प्रभावित किया। उसकी दशा और दिशा दोनों प्रभावित की। निश्चित रूप से पहला नाम गांधीजी का है। सर्वविदित है कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बने। उन्हें राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत परिवर्तन के लिए उत्सुक जनमानस मिला था। क्या नेहरू ने देशवासियों की अकांक्षा, अपेक्षा और भावनाओं को सही दिशा प्रदान की? इस विषय पर बहुत काम किया जा सकता है। किन्तु यह आलेख नेहरू के बारे में नहीं हैं। उनके बाद उनकी पुत्री इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी। उन्होंने अपनी तरह से देश चलाया। उनके आपातकाल के कारण ही जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय पटल पर अवतरित हुए। जयप्रकाश जी के कुछ शिष्य भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण चेहरे बने। पिछली सदी के अंत में अटल जी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारतीय राजनीति में सज्जनता और सुचिता स्थापित करने का प्रयास किया। उनके बाद कुछ वर्षों तक ऐसा कोई व्यक्तित्व भारतीय राजनैतिक पटल पर नहीं आया जो देश को नई दिशा दे सके।
2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय पटल पर अवतरित हुए। विदित ही है कि प्रधानमंत्री बनने के पूर्व वे लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उस समय केन्द्र में कांग्रेस और उसके साथियों की सरकार थी। मोदी ने गुजरात में विकास की अद्भुत गंगा प्रवाहित की। पहली बार किसी राज्य में अद्भुत प्रशासनिक क्षमता, दूरदर्शिता और परिकल्पना वाले व्यक्ति मुख्यमंत्री बने। शायद ही कभी किसी राज्य में इस तरह का व्यक्ति मुख्यमंत्री बना हो। निश्चित रूप से नहीं। कच्छ के भुकंप का उन्होंने जिस तरह सामना किया उसकी प्रशंसा सभी ने की थी। फिर गोधरा में ट्रेन में लोग जिंदा जला दिए गए। परिणाम स्वरूप गुजरात दंगे हुए। ये दंगे मोदी के लिए भी बहुत बड़ी मुसीबत लेकर आएं। केन्द्र में कांग्रेस व उसके साथियों की सरकार बनी। उन्होंने पूरा प्रयास मोदी को दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराने का किया। सोनिया सर्वेसर्वा थी। मोदी के खिलाफ जांच हेतु केन्द्र ने एसआईटी बनाई। नियत और निर्देश दोनों मोदी को फंसाने के थे। मोदी से एसआईटी ने बहुत लम्बी पूछताछ की, किन्तु मोदी की कोई भागीदारी दंगों में नहीं मिली। उस एसआईटी दल के प्रभारी एक ईमानदार अफसर थे। उन्होंने साफ लिखा कि मोदी किसी भी तरह से दंगों के लिए उत्तरदायी नहीं है। इस रिपोर्ट से कांग्रेस की केन्द्र सरकार उन अधिकारी से नाराज हो गई और उन्हें भुगतना भी पड़ा।
आजादी के बाद भारत प्रजातंत्र बना। प्रजातंत्र का मूल मंत्र बहुमत के अनुसार सरकार चलाना होता है। भारत एक हिन्दु बहुल देश है, किन्तु दुर्भाग्य से हिन्दु और हिन्दुत्व की बात करना सम्प्रदायवाद माना जाने लगा। अन्य सभी धर्म के लोग उनके धर्म की बात करते तो क्षम्य था, किन्तु किसी हिन्दु के लिए हिन्दुत्व की बात करना अपराध माना जाता था। भारत अकेला ऐसा देश रहा है जिसमें बहुमत की बात करना अपराध जैसा था। 2014 में नरेन्द्र मोदी के रूप में पहले ऐसे प्रधानमंत्री आएं जिन्होंने हिन्दु बहुमत की गरिमा को स्थापित किया। जवाहरलाल नेहरू के जमाने में हिन्दुत्व को नकारने का पूरा प्रयास किया गया। सर्वविदित है कि जवाहरलाल नेहरू ने नवीन सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में जाने से राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को मना किया था। मोदी ने हिन्दु बहुमत के गौरव को भारत में स्थापित किया। उन्होंने गर्व से कहा कि वे हिन्दु है और हिन्दु बहुमत के अनुसार देश चलेगा। उनके विरोधी उन्हें संकुचित साम्प्रदायिक विचारधारा के मानते हैं। यह उचित नहीं है। उनकी सरकार द्वारा बनाई सभी कल्याणकारी नीतियां सभी देश वासियों के लिए बिना भेदभाव के उपलब्ध हैं।
मोदी ने राष्ट्रीयता की भावना को जन-जन में जाग्रित किया। आज सभी देशवासी भारतीय होने पर गर्व महसूस करते हैं। मोदी के प्रभाव से मूलभूत परिवर्तन जनमानस में आया है। अब देश में ‘हम भी हैं’ की भावना जाग्रित हो गई है। यह बहुत बड़ा परिवर्तन है। आत्मविश्वास – हताशा और निराशा में बहुत अंतर होता है – देश और व्यक्ति दोनों के लिए। यही परिवर्तन नरेन्द्र मोदी ने किया है सभी भारतीयों के मन में – देश में भी, विदेश में भी।
मोदी के आने के बाद देश की विदेशनीति में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। उन्होंने निर्डर और स्वतंत्र विदेशनीति को अपनाया। उनकी सरकार की विदेशनीति का मूलमंत्र देशहित रहा है। इसी कारण विदेश में भारत और भारतीयों की प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई है। सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत बहुत सक्षम हुआ है। अब कोई देश भारत को आंख नहीं दिखा सकता है। अस्त्र-शस्त्र का उत्पादन भी बहुत बढ़ गया है। अब भारत एक प्रमुख उत्पादक – निर्यातक देश बन गया है। आर्थिक प्रगति की जो सीढ़ियां देश ने चढ़ी वे सर्वविदित है। उनकी विदेशनीति से भारत का सम्मान पूरे विश्व में बहुत बढ़ा है। अब भारत की आवाज पूरी दुनिया में बड़ी ध्यान से सुनी जाती है।
मोदी ने आक्रामक राजनीति को प्रतिपादित किया। अपने विरोधियों पर निर्मम प्रहार करना उनकी राजनैतिक शैली का मूल मंत्र है। मोदी पूरी तरह से अपनीपार्टी और राष्ट्र के प्रति समर्पित है। ग्रीक दार्शनिक प्लेटो के अनुसार एक आदर्श शासक अकेला होना चाहिए, उसका परिवार नहीं होना चाहिए। परिवार होने से शासक स्वयं के हित में काम करता है। मोदी प्लेटो की इस परिभाषा पर शत-प्रतिशत खरे उतरते हैं। मोदी कहते ही हैं – ‘मेरा देश, मेरा परिवार’। मोदी ने परिश्रम की भी पराकाष्ठा कर दी है। भविष्य में किसी अन्य प्रधानमंत्री के लिए इस स्तर को छूना शायद ही संभव हो। उनकी इन विशेषताओं के कारण ही वे जन-जन के प्रिय हैं और नागरिक उनके नाम पर वोट करते हैं।
वर्तमान चुनाव मोदी की लोकप्रियता की अच्छी परीक्षा होने जा रहे हैं। इस बार मोदी ने 400 पार का लक्ष्य एनडीए के लिए निर्धारित किया है। माहौल तो मोदी के पक्ष में है, किन्तु मतदाता के मन को कोई नहीं जानता। हमने अच्छे-अच्छे चुनावी पंडितों की भविष्यवाणी गलत होते देखी है। अन्य दलों से भाजपा की ओर भागती भीड़ सफलता की गारंटी नहीं हो सकती। वे अपने स्वार्थ के लिए आ रहे हैं। हमारा आंकलन है कि आम नागरिक और मतदाता इस तरह की अवसरवादिता को पसंद नहीं करता। भाजपा में आने वाले केवल अवसरवादिता के लिए आएं हैं, किसी सिद्धांत के लिए नहीं। इनसे भाजपा को बहुत फायदा होने की संभावना कम है। फिर भी, मोदी का आत्मविश्वास और परिश्रम प्रशंसनीय है। यदि 400 पार हुए, तो मोदी के काम और नाम से ही होगा। मोदी है तो मुमकिन है।