रतलाम

साधना के क्षेत्र में रहे बाहर से कठोर और अंदर से कोमल -आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

रतलाम। साधना के क्षेत्र में कोमल रहने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं हो पाता। साधना के लिए अंदर से कोमल और बाहर से कठोर होना जरूरी है। बाहर से कोमल रहने वाले की साधना परिवार की मनुहार में टूट जाती है। साधना में दृढता, स्थिरता और मजबूती स्व के चिंतन से आती है।

यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि स्व का चिंतन नहीं होता, तो साधना के क्षेत्र में कुछ नहीं मिलता और सारी बातें उपर से निकल जाती है। साधना के क्षेत्र में उपर से कठोरता का मतलब किसी भी परिस्थिति में कंप्रोमाइज नहीं करना होता है और अंदर से कोमल रहने से आशय संयम के प्रति आस्था और दृढता पैदा करना है।

आचार्य श्री ने कहा कि समझ का परिणाम त्याग होता है। यदि समझ होगी, तो ही त्याग होता है। देह से वस्तुआंे को छोडना यदि त्याग है, तो दिल से वस्तुओं का परित्याग वैराग्य है। दिल से जिसे भी छोड दिया जाता है, उसे ग्रहण करने की इच्छा नहीं होती है। जीवन में जब तक वैराग्य नहीं हो, तब तक साधना मंे शक्ति नहीं आती और वैराग्य आने पर व्यक्ति साधना में स्वतं चला जाता है। साधना में शक्ति के लिए पुरूषार्थ आवश्यक है।

आचार्यश्री ने कहा कि शक्ति कभी सोचने से नहीं आती, उसके लिए पुरूषार्थ करना ही पडता है। हमारा कल का पुरूषार्थ आज का भाग्य है और आज का पुरूषार्थ कल का भाग्य है। शक्ति कभी भाग्य के भरोसे नहीं आती। उसे पाने का एकमात्र मार्ग पुरूषार्थ ही है। आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने संबोधित किया। उन्होंने जीवन की सार्थकता के लिए तप,त्याग करने पर बल दिया। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

रविवार को दशवैकालिक सूत्र पर संगोष्ठी
परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा, एवं उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा की निश्रा में 5 नवंबर को संगोष्ठी होगी। श्री हुक्म गच्छीय शांत का्रंति जैन श्रावक संघ द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी का विषय दशवैकालिक सूत्र रहेगा। इसमें दो सत्र होंगे। पहला सत्र सुबह साढे आठ बजे से छोटू भाई की बगीची में रहेगा, जबकि दूसरा सत्र दोपहर डेढ बजे सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में होगा। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो धर्मचंद जैन जयपुर रहेंगें।

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