धनवान, रूपवान, एश्वर्यवान, भगवान बनने से अच्छा है गुणवान बनना-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा
रतलाम । संयम का मूल उददेश्य गुणवान बनना है। लोग धनवान बनना चाहते है, रूपवान बनना चाहते है, एश्वर्यवान बनना चाहते है और कुछ तो भगवान बनना चाहते है, लेकिन इन सबसे अच्छा है गुणवान बनना। दशवैकालिक सूत्र के अनुसार साधु वहीं है, तो गुणों में रमण करता है। सबसे बडा गुण संयम ही है। ये बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही।
आचार्यश्री की निश्रा में रविवार को श्री हुक्म गच्छीय शांत का्रंति जैन श्रावक संघ द्वारा दशवैकालिक सूत्र पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दो सत्रों मंे हुई इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो धर्मचंद जैन जयपुर रहे। आचार्यश्री ने मार्गदर्शन देते हुए कहा संयम में सारे आनंद छुपे है। अधीरता मन को अशांत करती है और अशांत व्यक्ति अपने गुणों की खेती को नष्ट कर देता है। जिदंगी की लडाई हर व्यक्ति को खुद ही लडनी पडती है। यह लडाई बाहर से अधिक अंदर की होती है, जिसमंे खुद को जीतना ही संयम है।
आचार्यश्री ने कहा कि लोग ज्ञान देने आते है, लेकिन साथ देने नहीं आते। अपनी लडाई को जीतना है, तो शूरवीर बनो। व्यक्ति यदि आत्मवीर और शक्तिशाली होगा, तो जीतेगा और कायर रहेगा, तो हार जाएगा। जीतने के लिए केवल विश्वास जरूरी है। हारने वाला परिस्थितियों से ही नहीं मनोस्थिति से भी हार जाता है, इसलिए मन की स्थिति बदलना आवश्यक है। आत्मा से जो सशक्त होता है, वहीं संयम में सजग रहता है। परमात्मा ने यदि संयम के गुणों का वर्णन किया है, तो पहले खुद उन्होंने संयम का पालन किया फिर अमृत देशना दी है। संसार में समस्याएं अनेक होती है, लेकिन समाधान एक ही होता है और वह यह कि मैं करूंगा। संयम के लिए यदि खुद पहल करते है, तो सफलता निश्चित मिलती है।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने दशवैकालिक सूत्र की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता प्रो धर्मचंद जैन ने कहा कि साधु जीवन को तीन दोष विकृत कर देते है। पहला विभूषा अर्थात दैहिक साज-सज्जा, दूसरा विजातीय सपंर्क और तीसरा गरिष्ठ भोजन अर्थात खान-पान। इनसे हर साधक को बचना चाहिए। इसके अलावा जनसंपर्क कम हो, आगम के प्रति आस्था बढे, मान-सम्मान की भूख नहीं रहे, वरिष्ठों के प्रति आदर रहे और स्वाध्याय से आत्म चिंतन करते है, तो साधु जीवन निर्दोष रहता है। श्री जैन ने साधु के कार्य-व्यवहार पर भी प्रकाश डाला। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।