जानिए रतलाम आ रहे जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज के बारे में…
रतलाम। त्रिवेणी तट पर आयोजित महारूद्र यज्ञ के दूसरे दिन 3 जनवरी दोपहर 3 बजे श्री शंकाराचार्य जी धर्मसभा को संबोधित करेंगे। आदित्य वाहिनी रतलाम श्री अश्विनि पाण्डेय जी बता रहे हैं, शंकाराचार्य जी के बारे में विस्तार से।
श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नायगोवर्धनमठ पुरीपीठ के वर्तमान 145 वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकाराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज भारत के एक ऐसे संत है। जिनसे आधुनिक युग में विश्व के सर्वोच्च संगठन संयुक्त राष्ट्रसंघ ने दिनांक 28 से 31 अगस्त 2000 को न्यूयार्क में आयोजित विश्वशांति शिखर सम्मेलन तथा विश्व बैंक ने वर्ल्ड फेथ्स डेवलपमेंट डाइलॉग 2000 के वाशिंगटन सम्मेलन के में उनसे लिखित मार्गदर्शन प्राप्त किया।
वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर व मोबाईल फोन से लेकर अंतरिक्ष तक के क्षेत्र में किए गए आधुनिक आविष्कारों में वैदिक गणितीय सिद्धांतों का उपयोग किया है, जो पूज्यापद जगद्गुरू शंकाराचार्य श्री स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा रचित स्वस्तिक गणित नामक पुस्तक में दिए गए हैं। गणित के ही क्षेत्र में पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य जी महाराज की अंक पदीयम तथा गणित दर्शन नाम से दो और पुस्तकों विश्व मंच पर वैज्ञानिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आविष्कारों के परिष्कृत मानदंडों से भारत वर्ष को पुनः विश्वगुरू के रूप में उभारने वाले पूज्यपाद जगद्गुरू श्रीशंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज को श्री गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन 144 वें शंकराचार्य पूज्यपाद जगद्गुरू स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज ने 1992 में उन्हें गोवर्धनमठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया।

राष्ट्ररक्षा की अपनी राष्ट्र व्यापी योजना को मूर्तरूप दिलाने, एक बुद्धिमान, आत्मनिर्भर समाज बनाने, मूल्यों की रक्षा करने, राष्ट्र और इसकी एकता को सुरक्षित करने के उद्देश्यों हेतु उन्होंने देश के प्रबुद्ध नागरिकों को लिए ‘पीठ परिषद्’ और उसके अंतर्गत युवकों की ‘आदित्य वाहिनी’ तथा मातृशक्ति के लिए ‘आनन्द वाहिनी’ के नाम से एक संगठनात्मक परियोजना तैयार की, जिसका मुख्य उद्देश्य अन्यों के हित का ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, देश की सुरक्षा और अखण्डता है। उनका प्रयास है कि पार्टी और पन्थ में विभक्त राष्ट्र को सार्वभौम सनातन सिद्धांतों के प्रति दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक धरातल पर आस्थान्वित कराने का मार्ग प्रशस्त हो।
पुरी के शंकराचार्य सनातन धर्म, उसके मूल्यों और गौरव की रक्षा के लिए आदि शंकराचार्य की तरह पूरे भारत में दूर-दूर तक यात्रा कर रहे हैं। वह अपने प्रवचनों के माध्यम की एकता, इसके क्षेत्रों की सुरक्षा, गोरक्षा, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के संदर्भ में चितांओं को संबोधित करते रहे हैं। इस देश के बुद्धिजीवी उनसे जुड़े रहे हैं, परिवर्तन की एक लहर शुरू हो गई है, जो संभावित रूप से राष्ट्र को एक नई दिशा प्रदान करती है।
इस महान दिव्यमूर्ति के दर्शन स्वागत एवं आशीर्वाद के लिए देश के श्रद्धालु लालायित रहते हैं।