रतलाम

ज्ञान का दीप जलाओं, पूरी जिदंगी को ज्योर्तिमय बनाओ

रतलाम। दीप मालिका पर्व पर मिटटी के दीप जले, तो क्या? जले! जलाना ही है, तो जीवन में ज्ञान का दीप जलाओं। जिसके अंदर ज्ञान का दीप जल जलता है, उसके जीवन में मोह का अंधकार नहीं रहता। ज्ञान का दीपक जलाओं और अपनी पूरी जिदंगी ज्योर्तिमय बनाओं।

दीपावली पर्व पर यह संदेश परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने दिया। छोटू भाई की बगीची में उन्होंने दीप मालिका पर्व का जीवन में विशिष्ट महत्व बताते हुए कहा कि मोह और अज्ञान जीव आत्मा को अंधकार ग्रस्त कर देते है। दीप मालिका पर्व इसी अंधकार से प्रकाश में आने के लिए आता है। इस पर्व पर हर साधक को आत्म चिंतन कर अपने अज्ञान और मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने कहा कि मोह और अज्ञान को दूर करने का प्रयास ही जीवन में प्रकाश लाता है। मिटटी के दीप थोडी देर जलकर बुझ जाते है और ऐसे बुझे दीपों को कोई संभालकर नहीं रखता। इस संसार की यही रीति है, मगर यदि जीवन में यदि एक बार ज्ञान का दीप जल गया, तो वह जलता ही रहेगा। इससे पूरी जिदंगी ज्योर्तिमय हो जाएगी। दीप मालिका पर्व जीवन को ज्योर्तिमय बनाने का संदेश ही देता है। इस संदेश को समझकर हर साधक को अपने जीवन में प्रभु की वाणी का विश्वास करते हुए आत्म ज्ञान का दीप जलाना चाहिए।

उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने इस मौके पर दोषमुक्त होने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि दोषमुक्त होने वाले ही दुखों से मुक्त हो जाते है। सांसारियों की विडंबना है कि वे दुखों से मुक्त तो होना चाहते है, लेकिन दोष मुक्त नहीं होना चाहते। वास्तव में दोष ही दुख का कारण है, इसलिए दोषों से मुक्त का प्रयास करना चाहिए। तरूण तपस्वी श्री युगप्रभ मुनिजी मसा ने भगवान का निर्वाण दिवस जप, तप के साथ मनाने का आव्हान किया। इस मौके पर राजस्थान के मंगलवाड से आए गोपालसिंह मांडावत ने 21 उपवास की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। प्रवचन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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