मध्य प्रदेशरतलाम

तहसीलदार तो झाँकी है, अभी एसडीएम बाकि है !

तहसीलदारों के विरोध पर सरकार और पार्टी की नजर

रतलाम । Kishan sahu

भारतीय जनता पार्टी का नारा है, ‘ मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’। जिसका एक मतलब यह भी है कि प्रशासनिक कार्य में सरकार का न्यूनतम हस्तक्षेप होगा। जिससे सुशासन की स्थापना होगी। लेकिन इन दिनों मध्यप्रदेश में केबिनेट के एक आदेश आने के बाद भाजपा के इस नारे पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि प्रदेश में भाजपा गवर्नेंस के काम में हस्तक्षेप करने के इरादे से राजस्व अधिकारियों के कार्यों को न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों में विभाजित किया गया है। 

इस नीति के तहत एक तहसील के सभी राजस्व न्यायालय को मर्ज कर एक न्यायालय किया जाएगा, जिससे राजस्व न्यायालयों की संख्या में कमी हो जाएगी जिसका असर यह होगा कि राजस्व प्रकरण तथा नामांतरण बंटवारा आदि के कार्यों की पेंडेन्सी बढ़ेगी। एक ओर जहां कई वर्षों से राजस्व कार्यों की दक्षता बढ़ाने के लिए तहसील में स्टाफ तथा रीडर, आपरेटर की कमी पूरी करने की मांग की जा रही है तो वहीं दूसरी ओर उसकी पूर्ति करने के बजाए शासन के इस आदेश से राजस्व न्यायालय कम किए जा रहे हैं जिससे अनन्तोगत्वा परेशानी का सामना तो आम जनता को ही करना पड़ेगा। ऐसे और भी नकारात्मक प्रभाव आम जनमानस पर पड़ेंगे जिससे शासन के सुशासन की स्थापना की नियत पर सवाल उठना लाजमी है। 

प्रशासनिक जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश की प्रशासन व्यवस्था की तर्ज पर एक क्षेत्र में दो तहसीलदार मध्यप्रदेश में भी काम करेंगे। उत्तर प्रदेश में एक क्षेत्र में दो एसडीएम होते हैं, एक एसडीएम का कार्य राजस्व अधिकारी के रुप में काम करना होता है, तो वहीं उसी क्षेत्र में दूसरी एसडीएम कार्यपालक दण्डाधिकारी के रुप में कार्य करते हैं। इस तरह लेस पावर या यूँ कहें कि पावर लेस एसडीएम राजनीतिक वर्ग की कठपुतली की तरह काम करते हुए नजर आते हैं, जिससे हमें गुड गवर्नेंस के पैमाने पर उत्तर प्रदेश एक पिछड़ा हुआ राज्य नजर आता है।

राजनीतिक वर्ग का हस्तक्षेप जितना ज्यादा होगा, उतना प्रशासन के लिए नियम-कायदों का पालन करना और करवाना उतना ही मुश्किल होगा। मध्यप्रदेश में जबसे मोहन सरकार सत्ता में आई है, लगातार लचर होती प्रशासनिक व्यवस्था पर आए दिन सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसे में कैबिनेट का यह आदेश सरकार की नियत पर प्रश्न खड़े कर रहा है। 

क्या मध्यप्रदेश भी गवर्नेंस के मामलों में पिछ़ड़ जाएगा? कुछ जानकार तो यहां तक कयास लगा रहे हैं कि अभी पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर म.प्र. के कुछ जिलों में तहसीलदारों के संवर्ग विभाजन की यह योजना लागू की जा रही है। इसके बाद पूरे प्रदेश में यह प्लान एक्शन में आने के बाद एसडीएम की बारी आएगी! कहा जा रहा है कि सरकार और पार्टी तहसीलदारों और उनके सहयोगियों के विरोध का आकलन कर रही है। जिसके बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी। कुछ जानकार चुटकी लेते हुए कहते हैं कि तहसीलदार तो झाँकी है, एसडीएम अभी बाकि है।

कानून व्यवस्था कैसे संभालेगे?

 राजस्व न्यायालय तहसीलदार के रूप में तहसीलदार निरंतर जनता के संपर्क में रहते है। लेकिन कार्यपालक मजिस्ट्रेट कैसे जनता के संपर्क में रहेंगे? कोई भी विषम परिस्थिति में वे जनता को कैसे भरोसे में लेंगे? वर्तमान में तहसीलदार राजस्व न्यायालय के रूप में आमजन के संपर्क में रहते है जिससे उन्हें कार्यपालक मजिस्ट्रेट के रूप कार्य करना आसान होता है। कानून व्यवस्था बिगड़ने पर आमजन से दूर रहने वाले कार्यपालक मजिस्ट्रेट कानून व्यवस्था को कैसे संभालेंगे?

 दो तहसीलदार बनाने से संभावित हानि

अत्यधिक कार्यभार – एक क्षेत्र में दो तहसीलदार पदों को बनाने से होने से राजस्व न्यायालय तहसीलदार को अत्यधिक कार्यभार का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उन्हें काम का दबाव और तनाव महसूस हो सकता है।

समय की कमी – राजस्व न्यायालय तहसीलदार को अपने व्यक्तिगत जीवन और आराम के लिए कम समय मिलेगा, जिससे उन्हें थकान और तनाव महसूस हो सकता है।

पारिवारिक जीवन में कठिनाई – राजस्व न्यायालय तहसीलदार पर कार्यभार बढ़ने से उन्हें अपने परिवार और दोस्तों के साथ कम समय बिताने का अवसर मिलेगा, जिससे उनके पारिवारिक जीवन में कठिनाई आ सकती है।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं – अत्यधिक कार्यभार और तनाव के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, और मधुमेह।

भ्रष्टाचार की संभावना – एक ही व्यक्ति के पास बड़ा राजस्व न्यायालय क्षेत्र होने से व्यक्ति को भ्रष्टाचार और अनुचित लाभ उठाने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे उन्हें कानूनी और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

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