रतलाम

उपनिषद कथा का तृतीय दिवस न कर्म लिप्यते नरे

रतलाम। उपनिषद कथा तृतीय दिवस महर्षि दयानंद वैदिक विद्यालय परिसर परिसर इंदिरा नगर आर्य समाज रतलाम के तत्वाधान में उपनिषद कथा का आयोजन हो रहा है कथा के वक्ता दर्शन योग धाम गांधीनगर, गुजरात के आचार्य योगेश जी वैदिक हैं।

न कर्म लिप्यते नरे
मनुष्य कर्म इस प्रकार से करे कि कर्म का बंधन अर्थात लेपन न हो और वह तब ही संभव है जब निष्काम कर्म किए जाएं क्योंकि मुक्ति निष्काम कर्म के करने से ही होगी। मनुष्य पूर्ण पुरुषार्थ करके प्रभु के प्रति समर्पण भाव इस प्रकार से रखे जैसे नवजात शिशु मां की गोद में निश्चित रहता है और शिशु के योगक्षेम का पूर्ण दायित्व मां का ही रहता है।

आर्य समाज रतलाम द्वारा आयोजित उपनिषद कथा में श्रोताओं से कहा कि दो प्रकार की प्रकृति के लोग हैं एक आसुरी और दूसरे दैवीय प्रकृति के।
जो लोग आसुरी प्रकृति के हैं वह दैत्य अर्थात देह पोषक हैं उनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य स्वयं की उदरपूर्ति मात्र है, आसुरी प्रकृति के विषय में विस्तार से व्याख्यान करते हुए कहा ” जो लोग केवल खुद के सुख को प्राथमिकता देते हैं अपने ही परिवार पर पूरा ध्यानाकर्षण रहता है, और अन्यों के घरों में अंधेरा लाने का काम करते हैं वे सभी भ्रष्ट लोग असुर है जो स्वयं के हित साधन में लगे रहते अन्यों का अहित करने में तनिक भी हिचकिचाते नहीं, ऐसे असुर अंधकारमय योनियों को प्राप्त होते हैं नर्क की यातनाएं भुगतने के बाद जब कभी मनुष्य जन्म मिल जाए तब भी नारकीय स्थिति को प्राप्त होते हैं।

आचार्य श्री ने मनुष्य योनि में नर्क क्या है इस पर प्रकाश डालते हुए कहा_ जहां अभाव है, बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सालय, उत्तम शिक्षा, न्याय, रोजगार, भोजन आदि मूल भूत सुविधाओं का अभाव है वह मनुष्य योनि का नर्क है।

मनुष्य को आत्महना नहीं होना चाहिए
लोग जानते हैं सही क्या है और गलत क्या है? फिर भी सीधी राह नहीं अपनाते और टेढ़े मेढे रास्तों पर चलते हैं, वे आत्महना हैं। यदि मनुष्य आत्मा के विपरीत चलेगा तो वह कभी उन्नति नहीं करेगा, ईश्वर के संदेश की अवज्ञा, श्रेष्ठ ज्ञानियों के उपदेश की अवज्ञा और पूर्वजों की शिक्षाओं की अवहेलना करना मनमाना आचरण करना ही आत्महना होना कहा जाता है।

और आत्महंता का जीवन वर्तमान में कठिन हो जाता है और शरीर छूटने के बाद मनुष्य जन्म दुर्लभ होकर हजारों वर्षों तक पशु पक्षियों की योनियों में दुःख भोगना पड़ता है।

इसलिए आत्महंता न बनें। भजन प्रस्तुति श्री वेदप्रकाश आर्य – तन में ॐ मन में ॐ स्वागत श्रीमती माया पाटीदार निधि अग्रवाल श्री सतीश दहिया श्री शंकरलाल परमार श्री प्रशांत शौचे-संस्कार भारती,श्री मनमोहन दवेसर श्री रवीन्द्र सिंह ठाकुर द्वारा किया गया। श्रवण उपनिषद कथा में क्षेत्र के गणमान्य नागरिक महिलाएं एवं पुरुष बड़ी संख्या में उपस्थित थे।यह जानकारी श्री प्रकाश जी अग्रवाल ने दी।

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