क्या मुख्यमंत्री जेल से सरकार चला सकता है?

अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी से एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बिन्दु पर विचार कर उसका संविधान की दृष्टि से विश्लेषण करना आवश्यक हो गया है। केजरीवाल राजनीति के बहुत चतुर खिलाड़ी हैं। गिरफ्तार होकर जेल पहुंचने के बाद भी उन्होंने मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ने की ठानी है। वे जेल से ही सरकार चलाना चाहते हैं। उनका उद्देश्य केन्द्र सरकार को उलझन में डालना है। उनके इस निर्णय से एक संवैधानिक प्रश्न उपस्थित हो गया है। इस पर विचार करना आवश्यक है। यदि केन्द्र सरकार उन्हें एलजी के द्वारा पद से हटाती है, तो केजरीवाल उसका पूरा राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश करेंगे। उनमें केन्द्र सरकार को उलझाने की पूरी क्षमता और चालाकी है। दूसरे, वे उनकी ही पार्टी के किसी अन्य व्यक्ति को सत्ता सौंपना नहीं चाहते। वे अच्छी तरह जानते हैं कि एक बार सत्ता गई तो गई।
संवैधानिक दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है कि कोई मुख्यमंत्री किसी अपराधिक प्रकरण में गिरफ्तार होने के बाद भी पद से त्यागपत्र न दे और जेल से ही सरकार चलाने की जिद्द पर अड़ा रहे। भारत के संवैधानिक इतिहास में यह पहली बार हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न है। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार किया जाना चाहिए। यह संवैधानिक प्रश्न पहली बार उपस्थित हुआ है। विदित ही है कि केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए याचिकाएं लगाई गई किन्तु उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को हटाने का निर्णय दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अथवा राष्ट्रपति कर सकते हैं। केजरीवाल के पूर्व गिरफ्तार हुए मुख्यमंत्रियों ने अपने पद से तुरंत त्यागपत्र दे दिया। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमेंत सोरेन का प्रकरण बिल्कुल नया है। ईडी ने जैसे ही उन्हें गिरफ्तार करने की सूचना दी वे राजभवन गए और अपना त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिया। ऐसे प्रकरण पूर्व में भी हुए हैं। पूर्व में भी गिरफ्तार हुए किसी अन्य मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र न देकर जेल से ही सरकार चलाने की जिद्द नहीं की। अतः महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न यह है कि क्या किसी मुख्यमंत्री का गिरफ्तार होने के बाद भी जेल से सरकार चलाना संवैधानिक दृष्टि से उचित है? हम इसी पर संविधान के अनुसार विचार करेंगे।
हमारे संविधान में संघीय शासन की व्यवस्था है। जिसमें संघ और उसकी इकाईयों के अतिरिक्त राज्यों के प्रशासन के लिए पृथक प्रणालियां है। संविधान के भाग 6 में राज्य सरकार की संरचना का विवरण दिया है। राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रधान राज्यपाल है। उसी प्रकार जैसे संघ की कार्यपालिका शक्ति का प्रधान राष्ट्रपति है। राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है और राज्य की सभी कार्यवाही राज्यपाल के नाम से की जाती है। संविधान के अनुसार राज्य में एक मंत्रिपरिषद होती है और राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है। कुछ विवेकाधीन कार्य करने का अधिकार भी राज्यपाल को संविधान में प्रदान किया गया है जिनमें मंत्रिपरिषद की सलाह लेना अथवा मानना आवश्यक नहीं है। मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है और अन्य मंत्री मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद का पद पर बने रहने के लिए दो बाते आवश्यक है। पहला, राज्यपाल की सहमति और दूसरा विधायिका का मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद में विश्वास। वास्तव में विधायिका का विश्वास ही पद पर बने रहने के का मूल आधार है। विधायिका का विश्वास खोने पर राज्यपाल मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद को विधायिका का विश्वास प्राप्त करने का निर्देश दे सकता है। एक अच्छे प्रजातंत्र में अलिखित परिपार्टी भी महत्वपूर्ण होती है। हमारा संविधान इंग्लैंड के संविधान से बहुत प्रभावित है। हमारा संविधान लिखित है, जबकि इंग्लैंड का संविधान अधिकतर अलिखित है। उसका सभी दृढ़ता से पालन करते हैं। हमारे यहां राज्यपाल तभी मुख्यमंत्री को त्याग पत्र देने को कह सकते हैं। जब वे विधायिका का विश्वास खो दें।
केजरीवाल का प्रकरण बिल्कुल अलग है। इस तरह की परिस्थिति पहली बार सामने आई है। यह केजरीवाल की जिद्द के कारण हुआ है। संविधान निर्माताओं ने इस तरह की परिस्थित की कल्पना नहीं की थी। यदि केजरीवाल को जेल से सरकार चलाने की अनुमति दी जाती है, तो जेल भेजने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। शासकीय सेवक जब किसी कारण से जेल जाते हैं, तो उन्हें तुरंत पद से निलंबित कर दिया जाता है और वह पद के सभी अधिकार खो देता है। मुख्यमंत्री पर भी यही नियम लागू होना चाहिए। निर्णय एलजी को लेना है। केन्द्र सरकार एलजी को मुख्यमंत्री को हटाने का निर्देश दे सकती है, किन्तु स्थिति विकट है। यदि बहुमत वाला दल फिर उसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री चुन लेती है, तो क्या होगा? भविष्य में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए एक संविधान संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसीलिए केन्द्र सरकार कोई निर्देश एलजी को नहीं दे रही। मोदी और शाह अच्छी तरह जानते हैं कि एलजी को केजरीवाल को हटाने के लिए कहना खतरे से खाली नहीं है। विधानसभा में आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त है। वह फिर केजरीवाल को नेता चुनन लेगी, तब क्या होगा? प्रकरण पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ को विचार हेतु भेजा जाना चाहिए। वैसे एलजी केजरीवाल को हटाकर उनकी पार्टी को दूसरा नेता चुनने के लिए कह सकते हैं। केजरीवाल का जेल से सरकार चलाना संवैधानिक दृष्टि से गलत है। सर्वमान्य सिद्धांत है कि शासकीय सेवक गिरफ्तार होने के बाद अपने पद के सभी अधिकार खो देता है। मुख्यमंत्री पर भी यह सिद्धांत लागू होता है। नैतिक दृष्टि से भी यह अनुचित है, किन्तु केजरीवाल यह सब नहीं मानते। अन्ना हजारे का आदर्शवादी शिष्य कहां से कहां पहुंच गया।