भाजपा को अपनी नीति और कार्यशैली पर पुनर्विचार करना चाहिए
उपचुनाव के परिणाम इंडी – टीएमसी- आप के लिए खुश खबरी लेकर आए हैं, वहीं भाजपा के लिए निराशा पूर्ण खबर। परिणाम सर्वविदित है। इन परिणाम से इंडी व अन्य दलों में एक बार फिर उत्साह का संचार हो गया है। यद्यपि भाजपा बहुत निराश दिखाई नहीं देती, किन्तु उसे इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए और अपनी नीति और कार्यशैली पर पुनर्विचार करना चाहिए। इन उपचुनावों में भाजपा 13 में से 9 सीटें हारी और उनके सहयोगी दल ने भी 2 सीटें गवाई। कांग्रेस 13 में से 4 सीट पर जीती व सहयोगी दल ने भी एक सीट जीती। लोकसभा चुनाव में मिली सफलता से कांग्रेस पहले से ही उत्साहित है। उपचुनाव के परिणाम ने उसमें अधिक विश्वास और उत्साह का संचार किया होगा।

भाजपा में कई शातिर विचारक हैं। संघ का सहयोग एवं समर्थन भी भाजपा को प्राप्त होता है। परन्तु वास्तव में देखा जाए तो मोदी और शाह की विचारधारा पर ही भाजपा चलती है। मोदी के विचारों को शाह कार्य रूप में परिणित करते हैं। उन्हीं के दिशा निर्देशों के अनुसार उम्मीदवारों का चयन किया जाता है और चुनाव लड़ा जाता है। किन्तु इतने बड़े देश में सबकुछ संभालना एक व्यक्ति के लिए संभव नहीं। निश्चित रूप से भाजपा को राष्ट्रीय और दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बनाने का श्रेय शाह को जाता है। नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद भी शाह का निर्णय ही अंतिम होता है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को 62 सीटों का नुकसान हुआ। उसके बाद ये पहले उपचुनाव थे। इनमें भी भाजपा को असफलता ही हाथ लगी। हमारा प्रयास भाजपा की इन असफलताओं पर विचार करने का है। सबसे बड़ा कारण युवाओं की सरकार से निराशा है। मोदी कहते हैं कि भारत एक युवा देश है, 65% युवा हैं। स्पष्ट है कि युवा वोटर का बहुमत है किन्तु अधिकतर युवा भाजपा सरकार की नीतियों से प्रसन्न नहीं हैं, वे नाराज हैं युवाओं के प्रति मोदी सरकार की बेरूखी से। अभी-अभी हुए नीट घोटाले ने आग में घी का काम किया। अनगिनत प्रमाण होने के बाद भी सरकार के अड़ियलपन से न केवल युवा बल्कि संपूर्ण समाज में नाराजगी है। केवल 20 लाख विद्यार्थी और उनके परिवार ही दुःखी और निराश नहीं हैं, देश के सभी युवा बहुत निराश हैं। सरकार ने NTA के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। प्रधानमंत्री ने तो युवाओं के दुःख पर एक भी शब्द नहीं बोला। छोटी-छोटी बातों पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री युवाओं का रुदन (रोना) नहीं सुन रहे, न कोई कार्यवाही कर रहे। उचित तो यह होता कि NTA प्रमुख को दोषी मानकर उनके विरूद्ध तुरंत कार्यवाही की जाती और नीट परीक्षा निरस्त की जाती। प्रजातंत्र का मूलमंत्र बहुमत का आदर करना है, किन्तु युवाओं के विरोध और प्रदर्शन के बाद भी सरकार ने अपना अड़ियल रवैया नहीं बदला। हम जो कहें, वही सही, यह मोदी सरकार का दृष्टिकोण है। प्रजातंत्र में बहुमत का तिरस्कार करना सरकार को भारी पड़ता है। मोदी सरकार भी यही कर रही है जिसका परिणाम सामने हैं।
राज्यों में भी प्रतियोगी परिक्षाओं में भ्रष्टाचार होता है, किन्तु कार्यवाही बहुत कम होती है। केवल उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती में अनियमितता होने पर योगी जी ने परीक्षा निरस्त कर दी। वहां के युवा भी यही चाहते थे, किन्तु बार-बार परीक्षा निरस्त करने से धन और समय की बहुत हानि होती है। युवाओं का समय बहुत अमूल्य होता है। भारत सरकार व राज्य सरकारों को इससे सबक लेना चाहिए। प्रजातंत्र का मूलमंत्र जनमत का आदर करना ही है, किन्तु मोदी सरकार यह नहीं कर रही।
रोजगार के क्षेत्र में भी युवा भाजपा सरकार से बहुत नाराज हैं। यदि देश में 65% युवा हैं तो उनके लिए उचित रोजगार की व्यवस्था करना भी सरकार का दायित्व है। सामाजिक, शिक्षा, पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय होने के कारण मुझे पता है कि युवाओं में हताशा और निराशा है। केवल बैंकों से लोन उपलब्ध करा देने से काम नहीं चलेगा। कितने लोग ठेला चलाएंगे? यद्यपि कई क्षेत्रों में काम हो रहा है और रोजगार मिल रहे हैं, किन्तु युवाओं की संख्या और योग्यता के अनुसार नहीं। इससे सरकार के प्रति उनमें रोष है। लोकसभा चुनाव के परिणाम से यह स्पष्ट है। देश की जनसंख्या 1 अरब 45 करोड़ में से 97 करोड़ वोटर हैं, किन्तु भाजपा को केवल 24 करोड़ वोट मिले। स्पष्ट है कि बहुमत सरकार की नीतियों से प्रसन्न नहीं हैं। सरकार की यह नीति कि सरकार कहे यही सही, अनुचित है। इसी का परिणाम चुनाव में भुगतना पड़ता है।
भाजपा की तोड़-फोड़ के द्वारा अपनी सरकार बनाने की नीति भी लोगों को पसंद नहीं आती। हिमाचल में कुछ विधायकों के त्याग पत्र दिलवाकर कांग्रेस सरकार गिराने की नीति बुरी तरह विफल रही। उपचुनाव में भाजपा ने उन्हीं लोगों को टिकिट दी जिनके त्यागपत्र करवाकर सरकार गिराने की कोशिश की थी। उनमें से अधिकतर हार गए।
कई बार भाजपा पर वादा न निभाने के आरोप भी लगते हैं। कुछ पीछे जाएं तो महाराष्ट्र का प्रकरण याद आता है। महाराष्ट्र में पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा और शिवसेना ने साथ में लड़ा था। शिवसेना ने कहा था कि उनके और भाजपा के बीच में हुए समझौते के अनुसार ढाई-ढाई वर्ष दोनों की सरकार रहेगी। शिवसेना पहले सरकार बनाना चाहती थी किन्तु भाजपा अड़ गई और उद्धव ठाकरे कांग्रेस के साथ चले गए। मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने कांग्रेस एनसीपी के साथ समझौता कर लिया। उनके पिता बालासाहेब ठाकरे ने जीवन भर कांग्रेस की मुस्लिम परत नीति का विरोध किया। उनके पुत्र सत्ता के लिए कांग्रेस की गोद में जा बैठे। यदि भाजपा उस समय थोड़ा नरम रूख अपनाती और शिवसेना को पहले सरकार बनाने देती, तो आज महाराष्ट्र में उसकी जो दुर्गती हुई वह न होती। किन्तु तोड़-फोड़कर सरकार बनाना भाजपा की कार्यप्रणाली है। मध्य प्रदेश में भी यही किया था, किन्तु नागरिकों को यह नीति पसंद नहीं आती। भाजपा यह नहीं जानती या जानते हुए भी नहीं मानती।
यद्यपि मोदी सरकार ने अनेक कल्याणकारी नीतियां चला रखी है एवं 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रहे हैं फिर भी भाजपा को लोकसभा चुनाव में अपेक्षित वोट नहीं मिले। क्यों नहीं मिले, भाजपा को इस पर विचार करना चाहिए। वैसे मुफ्त अनाज देना सरकार और समाज के लिए अहितकारी है। इससे टैक्स देने वालों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। इसमें मध्यम वर्ग प्रमुख है, किन्तु मोदी सरकार को मध्यम वर्ग व सरकारी कर्मचारियों की कोई चिंता नहीं। सरकार की नीतियों से मध्यम वर्ग, खासकर सवर्ण मध्यम वर्ग बहुत दुःखी है। वे सबसे अधिक टैक्स देते हैं, किन्तु सरकार उनकी तरफ ध्यान नहीं देती। मोदी कितनी ही मजबूती दिखाएं किन्तु उन्हें सरकार सहयोगी दलों के सहारे ही चलानी पड़ेगी। उनमें दल बदलने का रिकॉर्ड बनाने वाले भी है। ख़बरें आने भी लगी हैं। इसलिए सरकार को जनभावना का आदर करके सबक लेना चाहिए।