उपनिषद कथा का (चतुर्थ) विश्राम दिवस
रतलाम। महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जयंती के आयोजन की श्रृंखला में वैदिक उपनिषद कथा का आयोजन किया l उपनिषद कथा विश्राम दिवस महर्षि दयानंद वैदिक विद्यालय परिसर परिसर इंदिरा नगर आर्य समाज रतलाम के तत्वाधान में उपनिषद कथा का आयोजन रहा कथा के वक्ता दर्शन योग धाम गांधीनगर, गुजरात के आचार्य योगेश जी वैदिक रहैं l ईश्वर एक है अनेक नहीं। फिर मनुष्य ईश्वर को अनेक मानते हैं यह भेद बुद्धि मनुष्य के पतन का कारण है, लोग कहते हैं ईश्वर कण कण में हैं अर्थात सर्वव्यापक है तथापि मानते स्थान विशेष पर हैं, और एक स्थान विशेष से भी संतुष्टि न होकर यहां से अच्छा अन्य उक्त प्रसिद्ध स्थान वाला श्रेष्ठ है यहां जो घर में घट में है वह काम चलाऊ है लेकिन शक्ति संपन्न उक्त तीर्थ विशेष पर है, ऐसी मान्यताएं मनुष्य को ईश्वर से दूर लेकर जाती हैं। वेद कहता है ईश्वर सर्वव्यापक है स्थान विशेष पर नहीं।मनुष्य ईश्वर से किसी भी क्षण दूर नहीं, मन के विचारे वाणी से बोले और शरीर से किए प्रत्येक व्यवहार को ईश्वर जानता है।
ईश्वर इंद्रिय का विषय नहीं इसलिए वह न आंखों से देखा जा सकता और न ही हाथों से छुआ जा सकता क्योंकि वह अगोचर है इसलिए बाहर ढूंढने की अपेक्षा ईश्वर को मनमंदिर में खोजोगे तो कृतकृत्यता हो जाएगी।जो मनुष्य ऐसा सोचते हैं कि ईश्वर भक्ति बुढ़ापे का विषय है अभी तो भोग ऐश्वर्य की सिद्धि करने का समय है वे भ्रम में हैं अन्त समय में उन्हें ईश्वर याद नहीं आएगा अपितु केवल भोग और भोग के साधन ही। जिससे उसकी अधोगति हो जाएगी।
यदि आप चाहते हो की आपकी सद्गति होवे तो धर्म शिक्षा आरंभ करो, यदि आप चाहते हो बच्चों के वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित देखना तो उनको संपत्ति के साथ साथ संस्कार देने हेतु जैसे ट्यूशन लगाते हो वैसे ही धर्म शिक्षा दिलाओ, जिससे आपकी संतान संपत्ति के साथ साथ संस्कारों से भी परिपूर्ण होगी। यदि संतान संस्कारवान होगी तो आपका बुढ़ापा आपके लिए अभिशाप न होकर वरदान सिद्ध होगा, एवं आप का गृहस्थ सफल हो जाएगा।
मनुष्य को चाहिए कि वह प्रतिदिन ईश्वर भक्ति करे, किए हुए कर्मों को याद करे, ईश्वर को याद करे खुद को वर्तमान अवस्था का ध्यान रखते हुए जीवन व्यवहार करें, क्योंकि यह शरीर तो एक दिन भस्म हो जाना है और अपने साथ केवल अच्छे कर्म और किया हुआ धर्म ही साथ जाने वाला है।
उपरोक्त व्याख्यान आचार्य श्री ने उपनिषद कथा के अन्तर्गत उपस्थित धर्म जिज्ञासुओं के समक्ष रखे।आचार्य श्री ने कहा सनातन धर्म में अंतिम संस्कार अंत्येष्टि है अर्थात अंतिम यज्ञ जिसे नरमेध और दाह संस्कार भी कहते हैं, इस क्रिया को शास्त्रोक्त रीति से संपन्न करना चाहिए यदि शास्त्रोक्त रीति से नहीं करेंगे तो मृतक और मृतक के परिवार को भयंकर पाप लगता है।
अंतिम संस्कार के संबंध में आचार्य श्री ने कहा मृत्युभोज कुप्रथा है वास्तविक तो अंतिम क्रिया है, जो मृतक है उसके भार के बराबर घृत, भार से दो गुना हवन सामग्री और भार से चार गुनी समिधाएं लेकर अंत्येष्टि क्रिया वेद पाठी ब्राह्मणों के सानिध्य से करावे, अस्थियों को जल के प्रवाहित कर पाप के भागी न बने अपितु किसी स्थान पर गाढ़ कर पौधा लगा देवे, और चिता की भस्म जिसमे पर्याप्त हवन आहुति दी गई उसे खेत में बिछा देवे जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बड़े।
यही करना धर्म है और ऐसा करने हेतु परिवार जनों से अनुरोध करें व अपनी अंतिम इच्छा नाम से वसीयत लिख जावे ताकि आपके उत्तराधिकारी शास्त्रोक्त रीति से क्रिया करें किसी प्रकार के पाखंड में न फंसे। स्वागत कु. कीर्ति शर्मा, श्री याकिन मेघवाल, पूर्व प्राचार्य एसएम एमएस अनिला कंवर, पूर्व प्राचार्य आई टी आई श्री आर एन अग्रवाल, एसबी आई नेता श्री तारणी व्यास, आर्य समाज सैलाना श्री शेखर राठौड़, आर्य समाज धामनोद,श्री विकास शर्मा द्वारा किया गया। भजन श्री रामबहादुर शास्त्री ने प्रस्तुत किया। आचार्य श्री योगेश वैदिक जी का सम्मान शाल श्रीफल एवं भेट श्री भगवान दास अग्रवाल, श्री रामप्रसाद पारिख, श्री राजेंद्र बाबू गुप्ता, श्री सुभाष सोनी, श्री शरद आर्य, श्री लल्लन सिंह ठाकुर, श्री रवीन्द्र सिंह एवं श्री प्रकाश अग्रवाल द्वारा किया गया तथा जनता ने अनुरोध कर की आप अगली बार अवश्य आवे।श्रवण उपनिषद कथा में क्षेत्र के गणमान्य नागरिक महिलाएं एवं पुरुष बड़ी संख्या में उपस्थित थे। यह जानकारी श्री प्रकाश अग्रवाल ने दी।