गुणी के गुणों को आत्मसात करने की चेष्टा करना चाहिए-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा
रतलाम। शब्दों की पहुंच कान तक होती है। रूप की पहुंच आंखों तक होती है। स्नेह की पहुंच हदय तक है, लेकिन गुणों की पहुंच आत्मा और परमात्मा तक होती है। परमात्मा तक पहुंचना हो, तो गुणों की पहुंच को बढाओ। गुणी के गुणों को आत्मसात करने की चेष्टा हर समय करते रहने चाहिए।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में आयोजित प्रवचन में उन्होंने पहुंच की व्याख्या करते हुए कहा कि परमात्मा तक केवल गुण ही पहुंचा सकते है, बाकी संसार की कोई वस्तु अथवा व्यक्ति हमे आत्मा और परमात्मा से नहीं मिला सकते। इसलिए हर व्यक्ति का लक्ष्य गुणवान बनने का होना चाहिए। गुणवान ही महान और फिर भगवान बनते है।
आचार्यश्री ने कहा कि गुणवान बनने के दो तरीके है, पहला गुणानुराग पैदा करना और दूसरा गुण दृष्टि रखना। गुणी व्यक्ति जब भी दिखाई दे, तब उसके प्रति विनम्र बनो और गुणों को आत्मसात करने की चेष्टा करो। क्योंकि चेष्टा ही व्यक्ति को गुणवान बनाती है। भजन और प्रवचन केवल संकेत है। यदि इन संकेतों को नहीं समझेंगे, तो भजन और प्रवचन भी जीवन में कोई बदलाव लाने वाले नहीं है।
उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने प्रति शल्लीनता तप पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रति शल्लीनता चार प्रकार की होती है। एक इन्द्रीय प्रति शल्लीनता, दूसरी कषाय प्रति शल्लीनता, तीसरी योग प्रति शल्लीनता और चैथी ब्रहमचर्य प्रति शल्लीनता। इनका तप जीवन में परिवर्तन लाता है। आंरभ में तरूण तपस्वी श्री युगप्रभजी मसा ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर खंडवा श्री संघ ने आचार्यश्री से खंडवा प्रवास की विनती की। प्रवचन के दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।