जीएसटी संग्रह का एक भाग स्थानीय निकायों को भी आवंटित किया जा सकता है
अनिल झालानी के दिये गए सुझाव से स्थानीय नगरीय स्वायतशासी निकायों की आर्थिक स्थिति सुधरने की उम्मीद जगी।
नई दिल्ली। पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह के मुताबिक माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का एक निश्चित फीसद तीसरे स्तर यानी स्थानीय निकायों को सहायता प्रदान करने के लिए आबंटित किया जा सकता है। एनके सिंह नीति ‘थिंक टैंक’ आर्थिक विकास संस्थान (आइईजी) के अध्यक्ष भी हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ थिंक सीरीज ‘अवर सिटीज’ के उद्घाटन सत्र में सिंह ने कहा कि जीएसटी के साथ करों के विलय ने स्थानीय निकायों के सामने आने वाली संसाधनों की कमी को और बढ़ा दिया है। यह प्रमुख चिंता है।
उन्होंने वित्तीय स्वायत्तता और संवैधानिक आवश्यकताओं के पालन के महत्त्व पर जोर दिया। इस सीरीज का आयोजन ओमिड्यार नेटवर्क के सहयोग से किया गया। सिंह ने कहा कि मैं उससे (जीएसटी संग्रह में से स्थानीय निकायों को आबंटन) दूर रहा, क्योंकि यह वित्त आयोग का नहीं, बल्कि जीएसटी परिषद का कार्य है। (हालांकि) स्थानीय निकायों के संसाधनों को काफी हद तक बढ़ाने के लिए संपत्ति कर क्या कर सकता है, इसके बारे में और अधिक विचार करने की जरूरत है।
विगत दिवस प्रकाशित समाचार कि देश में सोलहवें वित्त आयोग के गठन करने की प्रक्रिया चल रही है। यह सोलहवां वित्त आयोग केंद्र और राज्य सरकार के बीच 1 अप्रैल 2026 से 5 वित्त वर्ष के लिए करों से प्राप्त होने वाले राजस्व का बंटवारों के अनुपात से जुड़ी सिफारिश करेगा।
इस पर सृजन भारत के अनिल झालानी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण, ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज्य मंत्री श्री गिरिराज सिंह तथा पदस्थ वित्त आयोग को यह अनुरोध किया, कि कर राजस्व के विभाजन में एक नया फार्मुला बनाकर भविष्य में केंद्र और राज्य के साथ ही स्वायत्याशी नगरी निकायों को भी वित्तीय अंश प्रदान करने पर विचार किया जावे। सृजन भारत के अनिल झालानी द्वारा दिया गया सुझाव अंततः केंद्र सरकार को भाया।


श्री अनिल झालानी ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया था कि देश का बहुत बड़ा कर राजस्व प्राथमिक स्तर पर आम नागरिकों द्वारा पंचायत नगर पालिकाओं, नगर निगमों के लिये या उसके माध्यम से एकत्रित किया जाता है। 73 वे व 74 वे संविधान संशोधन के परिणाम स्वरुप स्थानीय संस्थाओं के योजनागत कार्यों एवं क्रियान्वयन का अतिरिक्त दायित्व आ गया है। जिससे कि उन पर वितीय भार बढ़ा है और स्वायतशासी निकायों की आर्थिक स्थिति बड़ी विकट हो रही है। परिणाम स्वरूप स्वायतशासी संस्थाएं अपने विकास कार्यों एवं योजनाओं के क्रियान्वयन पर केंद्र और राज्य सरकार से विभिन्न प्रकार के अनुदान व सहायता आर्थिक सहायता के रूप में राजस्व अर्जित करने के लिए मोहताज हैं।
अतः श्री झालानी ने जो कि जनहित व देश हितों में दूरदर्शी एवं व्यावहारिक सुझाव देते चले आ रहे है, इस बार फिर सुझाव दिया कि कर राजस्व के विभाजन की नई प्रणाली विकसित कर केंद्र और राज्यों के बीच ही नहीं बल्कि सृट्टढ़ आर्थिक स्थिती हेतु तृतीय अंश धारी स्वायतशासी निकायों को भी इसमें जोड़कर और स्वायत संस्थानों को दिए जाने वाले राजस्व को भी सम्मिलित कर तीन भागों में विभाजित करने का दायित्व वित्तीय आयोग को दिया जावे।
सृजन भारत के अनिल झालानी ने अपने “स्वान्तः सुखाय अभियान“ के अंतर्गत आमजन से यह अपना सुझाव जो केंद्र सरकार द्वारा मान्य किया गया है। इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए साझा किया है की जीएसटी संग्रह का एक भाग एक निश्चित फीसदी तीसरे अंशेधारी बनाकर यानी स्थानीय निकाय को सहायता प्रदान करने के लिए आवंटित किया जा सकता है।
अपनी दूरदर्शी विचार व्यक्त करते हुए 28 वर्ष पूर्व मे झालानी इन संस्थाओें की आर्थिक स्थिति के प्रति म.प्र. राज्य वित्त आयोग को यह सुझाव देकर कि स्वायतशासी निकायो पर बढ़ती जवाबदारी के पैमाने से यह दृष्टिकोण रखते हुए अपनी राय व चिंता व्यक्त कर चुके है कि सरकार अपनी आय का एक स्त्रोत इन संस्थाओं को हस्तांतरित करके करे।
राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी महकमें एंव उच्च वित्तीय संस्थानों द्वारा हमारे सुझाव पर ध्यान आकर्षित कर उसे सैद्वांतिक रूप से मान्य किए जाने पर श्री झालानी सरकार का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए हर्ष व्यक्त किया है।