अपने को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता- आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा
रतलाम। हर व्यक्ति को पहले अपने को जानने का प्रयास करना चाहिए। मैं कौन हूं? मैं क्या हूं? यह जानना जरूरी है, क्योंकि अपने को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। विडंबना है कि लोग अपने को जाने बिना परमात्मा को जानने की चेष्टा करते है, जो कभी भी सार्थक नहीं होती।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि आत्म ज्ञान ही परमात्म ज्ञान का प्रथम सौपान है। आत्म ज्ञान के लिए मन एवं इन्द्रियों की स्थिरता जरूरी है। मन और इन्द्रियां जब तक अपने-अपने विषयों में भटकती रहेगी, तब तक हमे आत्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। आत्म दृष्टा ही परमात्म दृष्टा बनते है।
आचार्यश्री ने कहा कि परमात्मा को आज बाहर खोजा जा रहा है। जबकि वे तो अपने अंदर ही है। यदि अपने अंदर को अंदर निहारोगे, तो परमात्मा छवि नजर आएगी। दृष्टियां दो प्रकार की होती है, पहली बर्हिदृष्टि-जिसमें मानव बाहर खोजता और दूसरी अंर्तदृष्टि-जिससे अंदर खोजा जा सकता है। बाहर दिखने वाला आभासी दुनिया है, जिसमें जगत के दर्शन होते है, लेकिन जगतपति के दर्शन नहीं होते। अंर्तदृष्टि से अपने अंतरंग में देखते है, ता हीे जगतपति के दर्शन होते है। यही सत्य और शाश्वत है।
उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने इससे पूर्व कर्म और धर्म की विवेचना करते हुए कहा कि कर्म को जानो अथवा धर्म को जानो। कर्म को जो जान लेता है, उसे धर्म का ज्ञान भी हो जाता है। हमे ये जीवन इन दोनो को जानने के लिए ही मिला है। आरंभ में तरूण तपस्वी श्री युगप्रभ मुनिजी मसा ने कहा जिन शासन मिलना सौभाग्य है और जिन शासन का फलना अहोभाग्य है। प्रवचन में कई लोगों ने तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। इस दौरान मुंबई, सूरत, बीकानेर, उदयपुर और जावरा सहित रतलाम के श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।